गुप्त काल में वाणिज्य तथा व्यापार के विकास का वर्णन करें
गुप्त काल में वाणिज्य तथा व्यापार के विकास का वर्णन करें
उतर – गुप्तकाल में व्यापार एवं वाणिज्य अपने चार्मोउत्कर्ष
पर था। आंतरिक व्यापार सड़कों और नदियों के द्वारा किया जाता था।
v गुप्तकालीन राजा द्वारा प्रचुर मात्रा में प्रचलित स्वर्ण मुद्राओं ने
व्यापार के विकास में बहुत सहयोग दिया। आन्तरिक व्यापार की प्रमुख वस्तुओं में दैनिक उपयोग की
लगभग सभी वस्तुएँ शामिल थीं जिन्हें नगटों एवं ग्रामों केबाजारों में मुख्यतः बैचा
जाता था शामिल थीं।
v i.गुप्त काल आर्थिक दृष्टि से समृद्ध था | लोगों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ एवं उन्नत थी
तथा देश धन - धान्य से परिपूर्ण थे | जनता
सुखी , संतुष्ट एवं समृद्ध थे | देश में विभिन्न प्रकार के उद्योग धंधे एवं
व्यवसाय प्रचलित थी |
v ii. वस्त्र व्यवसाय एक प्रमुख उद्योग बन चुका था
v iii. विभिन्न प्रकार के धातु को मिलाकर गलाना और ढालना और अनेक
प्रकार की वस्तुओं का निर्माण करना इस काल के लोग अच्छे से जानते थे
v iv.सोने , चांदी , मोतियों एवं विभिन्न प्रकार की रत्नों और मणियों से
आभूषण बनाने की कला अत्यंत उन्नत अवस्था में थी |
विभिन्न
प्रकार के धातु मिट्टी तथा पत्थर से मूर्ति बनाने का व्यवसाय भी प्रचलित अवस्था
में था
v v. व्यापार
आयात
विदेशों से आयात की जाने वाली प्रमुख वस्तुओं में
घोड़ा, सोना, मूंगा, खजूर, रेशम के धागे, नमक आदि
होते थे।
निर्यात
निर्यात की जाने वस्तुओं में रेशमी वस्त्र, ऊन, मलमल, महीन कपड़े, मोती, मयूर पंख , हीरे,हाथीदांत, सुगंधित द्रव्य और
मसाले प्रमुख थे। लोहा भी भारत से भेजा जाता था।
Comments
Post a Comment